Sanskrit Subhashitani - संस्कृत सुभाषितानि

१.उद्यमेनैव सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै: ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा: ॥


Only with industry and effort are works done. Animals never themselves enter lion's mouth.

प्रयत्न करने से ही कार्य पूरा होता है न कि चाहने मात्र से, सोते हुए शेर के मुँह में अपने आप (भोजन बन कर) जानवर नहीं घुसते ।



२. जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः । 
स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च ॥ - (  हितोपदेश, सुहृद्भेद)

With each drop of water the pitcher gradually gets filled. Similarly knowledge, merit and wealth are acquired.

जल की बूँदें गिरने से जैसे धीरे-धीरे घडा भर जाता है; उसी प्रकार, सभी विद्या, गुण-धर्म और सम्पदा धीरे-धीरे अर्जित होती हैं



३. विवाहात पूर्वं नेत्रे आवृते कुरु तत्पश्चात अर्धावृतं कुरु ।

Before marriage, keep your eyes fully open, after marriage keep them half open only.

विवाह से पहले अपनी आँखें पूरी खुली और विवाह के बाद आधी खुली रखो


४.  अपि स्वर्णमयी लंका न मे रोचते लक्ष्मण । 
         जननि जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसि ॥

Even Lanka is made of gold, it doesn't attract me O Lakshman, (Who gave me birth) my mother birthplace is dearer to me then heaven.

हे लक्ष्मण ! मुझे सोने की लंका भी नहीं लुभाती, जन्म देने वाली जन्मभूमि मेरे लिये स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है ।


५. प्रियो भवति दानेन प्रियवादेन चापरः । 
     मन्त्रंमूलबलेनान्यो यः प्रियः प्रिय एव सः ॥

People remain dear to us either by receiving gifts or by listening pleasing words. Some other can be made dear by reciting spells but who is genuinely dear to us, He/She will remain close to us (without above said techniques).

कुछ लोग उपहार देने पर प्रिय बनते हैं जबकि कुछ मनोहर बातों से, कुछ अन्य मन्त्रबल से प्रिय बनते हैं, पर जिन्हें आप प्रिय हैं, वो आपके प्रिय ही हैं (बिना कुछ किये ही)


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 ६.आचार्यात् पादमादते पादं शिष्यः स्वमेधया । 
    पादं सब्रह्मचारिभ्यः पादं कालक्रमेण च ॥ 

A student learns a quarter from teacher, a quarter from own intelligence, a quarter from fellow students, and the rest in course of time.

एक पाद शिक्षा आचार्य से, एक पाद शिष्य की अपनी मेधा से; एक पाद अपने जैसे ब्रह्मचारियों से और एक पाद शिक्षा समय के साथ मिलती है ।

यहाँ पाद से अर्थ Quadrant (वृत्त के चतुर्थ) भाग से है ।


७. विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् । 
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम् ||

Knowledge gives modesty, through modesty comes worthiness. By worthiness one gets prosperity and from prosperity faith/ virtue and then there is happiness.

विद्या से विनय आती है, विनय से योग्यता आती है । योग्यता से धन आता है धन से धर्म और उसके बाद सुख आता है ।

८. उष्ट्राणां विवाहेषु , गीतं गायन्ति गर्दभाः । 
परस्परं प्रशंसन्ति , अहो रूपं अहो ध्वनिः ।।

In camel's marriage ceremony, Donkeys are singing songs. They admire each other by saying Wow great beauty! Wow great singing.

ऊंटों के विवाह में, गधे गीत गाते हैं । एक दूसरे की बढाई करते हैं, वाह क्या सुंदरता है, वाह क्या गाना है ॥

९. अभिवादनशीलस्य नित्यम् वृद्धोपसेविनः । 
    चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम् ॥

He who respects and do service to elders/ old people. Four of his things keep growing, His age, knowledge, fame and power.

जो प्रतिदिन बडों को अभिवादन और सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल ये चार बढते हैं।

१०. नाभिषेको न च संस्कारः, सिंहस्य कृयते मृगैः । 
      विक्रमार्जित सत्वस्य, स्व्यमेव मृगेन्द्रता ॥

Animals neither do coronation, nor any ritual for Lion. Lion himself by his valor becomes King of all animals.

जानवरों ने शेर का ना कोई अभिषेक किया है ना कोई संस्कार । उसने (शेर ने) अपने आप पराक्रम से अपने आप को जानवरों का राजा बनाया है ।

११. काकचेष्टा वकोध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च | 
     अल्पाहारी गृह्त्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम् ।।

Efforts like a crow, concentration like a heron and sleep like a dog, little diet, who sacrifices his home, these are five virtues of a scholar.

कौवे जैसा प्रयत्न, बगुले जैसा ध्यान और कुत्ते जैसी नींद, कम खाने वाला, घर छोडने वाला, ये पांच विद्यार्थी के लक्षण हैं

१२. सुखार्थी वा त्यजेत विद्या , विद्यार्थी वा त्यजेत सुखम । 
     सुखार्थिनः कुतो विद्या , विद्यार्थिनः कुतो सुखम ॥

If you are seeking pleasure then give up search for knowledge, If you are a scholar then give up pleasure. There is no knowledge for pleasure seeker and no pleasure for a scholar.

सुख चाहते हो तो विद्या त्याग देना चाहिये, अगर विद्या चाहते हो तो सुख छोड देना चहिये । सुख ढूंढ्ने वाले को विद्या कहाँ, विद्यार्थी को सुख कहाँ ।

१३. सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् । 
      प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् , एष धर्मः सनातन: ॥

Tell the truth, tell sweet words But do not tell offensive truth, Do not tell a lie even if it is sweet, This is the eternal virtue.

सत्य बोलना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, किन्तु अप्रिय सत्य नहीं बोलना चाहिये । झूठ प्रिय हो तब भी नहीं बोलना चाहिये यही सनातन धर्म है ।

१४. अष्टादस पुराणेषु , व्यासस्य वचनं द्वयम् । 
      परोपकारः पुण्याय , पापाय परपीडनम् ॥

In all of 18 Puranas, There are only two sentences from Vyas. Philanthropy/ charity (Service for others) is to get virtue and hurt others to get sins.

अट्ठारह पुराणों में व्यास के दो ही वचन हैं, पुण्य के लिये परोपकार है और पाप के लिये दूसरों को दुःख ।

१५. पिबन्ति नद्यः स्वमेय नोदकं , स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः । 
      धाराधरो वर्षति नात्महेतवे , परोपकाराय सतां विभूतयः ।।

Rivers don't drink their own waters, Trees don't eat their own fruits. Clouds do not rain for themselves. Saints/ Good people are for others good.

नदियाँ स्वयं अपना पानी नहीं पीती हैं, वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं। बादल अपने लिये वर्षा नहीं करते हैं, सन्त परोपकार के लिये होते हैं ।

१६. येषां न विद्या न तपो न दानं , ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । 
      ते मर्त्यलोके भुवि भारभूताः , मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥

They who neither have knowledge nor austerity, neither wisdom nor morals, neither skills nor virtues. They are burden on this earth and are animals in human form spending time.

जिसके पास न विद्या है, न तप है, न दान है , न ज्ञान है , न शील है , न गुण है और न धर्म है ; वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते है और मनुष्य रूप तो हैं पर पशु की तरह चरते हैं (जीवन व्यतीत करते हैं ) ।

१७. धनं तावदसुलभं लब्धं कृचछेण रक्ष्यते।
लब्धनाशो यथा मृत्युस्तस्मादेतन्न चिन्तयेत्।
पहले तो धन का मिलना कठिन और मिल भी जाये तो फिर उसकी रखवाली कष्ट से होती है और मिले हुए धन का नाश मृत्यु के समान होती है इसलिए इस धनलाभ की चिंता न करनी चाहिए।


१८यं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् |
 उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् |
यह मेरा है ,यह उसका है ; ऐसी सोच संकुचित चित्त वोले व्यक्तियों की होती है;इसके विपरीत उदारचरित वाले लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार जैसी होती है |


          १९. विद्या मित्रं प्रवासेषु ,भार्या मित्रं गृहेषु |
           व्याधितस्यौषधं मित्रं , धर्मो मित्रं मृतस्य ||
ज्ञान यात्रा में ,पत्नी घर में, औषध रोगी का तथा धर्म मृतक का ( सबसे बड़ा ) मित्र होता है |


        २०.  पुस्तकस्था तु या विद्या ,परहस्तगतं धनम् |
          कार्यकाले समुत्तपन्ने सा विद्या तद् धनम् ||
पुस्तक में रखी विद्या तथा दूसरे के हाथ में गया धनये दोनों ही ज़रूरत के समय हमारे किसी भी काम नहीं आया करते |


          २१. श्रोत्रं श्रुतेनैव कुंडलेन दानेन पाणिर्न तु कंकणेन,
          विभाति कायः करुणापराणां  परोपकारैर्न तु चन्दनेन ||
कानों की शोभा कुण्डलों से नहीं अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है | हाथ दान करने से सुशोभित होते हैं कि कंकणों से | दयालु / सज्जन व्यक्तियों का शरीर चन्दन से नहीं बल्कि दूसरों का हित करने से शोभा पाता है |


२२. पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि, जलमन्नं सुभाषितम् ॥
पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा प्रदीयते ||
There are three jewels on earth: water, food, and adages. Fools, however, regard pieces of rocks as jewels.


२३. किमप्यस्ति स्वभावेन सुन्दरं वाप्यसुन्दरम्
 यदेव रोचते यस्मै भवेत्तत्तस्य सुन्दरम्   सुभाषितरत्नभाण्डागारम्


अन्नपते अन्नस्य नो देह्यनमीवस्य शुष्मिणः | प्र प्र दातारं तारिष ऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे ||
शब्दार्थ :- हे {अन्नपते } अन्न के पति भगवन् ! {नः} हमे {अनमीवस्य }कीट आदि रहित{शुष्मिणः} बलकारक {अन्नस्य } अन्न के भण्डार{ देहि } दीजिये {प्रदातारं }अन्न का खूब दान देने वाले को {प्रतारिष } दु:खो से पार लगाईये{ नः} हमारे {द्विपदे चतुष्पदे} दोपायो और चौपायो को { ऊर्जं } बल {धेहि } दीजिये |

           २४. दूरे चित्सन् तडिदिवाति रोचसे (ऋग्वेद /९४/)
परमात्मा दूर होकर भी बिजली की तरह समीप ही चमकता है

              २५. आपत्सु मित्रं जानीयाद् युद्धे शूरमृणे शुचिम्
              भार्यां क्षीणेषु वित्तेषु व्यसनेषु बान्धवान्  ( हितोपदेश )

आपत्ति में मित्र की, युद्ध में शूरवीर की, ऋण में पवित्रता की, धनहीन होजाने पर पत्नि की और संकटों में संबंधियो की सच्ची पहचान होती है


          २६.  सा सभा यत्र सन्ति वृद्धा ,वृद्धा ते ये वदन्ति धर्मम्  
          धर्म: नो यत्र सत्यमस्ति, सत्यं तद् यच्छलमभ्युपैति (महाभारत . ३५.५८)

वह सभा सभा नहीं है जहां वृद्ध हों, वे वृद्ध वृद्ध नहीं हैं जो धर्म की बात नहीं कहते, वह धर्म धर्म नही है जिसमें सत्य हो और वह सत्य सत्य नहीं है जो छल का सहारा लेता हो

         
२७. अन्नपते अन्नस्य नो देह्यनमीवस्य शुष्मिणः
प्र प्र दातारं तारिष ऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे ||
 हे {अन्नपते } अन्न के पति भगवन् ! {नः} हमे {अनमीवस्य }कीट आदि रहित{शुष्मिणः} बलकारक {अन्नस्य } अन्न के भण्डार{ देहि } दीजिये {प्रदातारं }अन्न का खूब दान देने वाले को {प्रतारिष } दु:खो से पार लगाईये{ नः} हमारे {द्विपदे चतुष्पदे} दोपायो और चौपायो को { ऊर्जं } बल {धेहि } दीजिये

२८. सं ग॑च्छध्वं॒ सं व॑दध्वं॒ सं वो॒ मनां॑सि जानताम्  
दे॒वा भा॒गं यथा॒ पूर्वे॑ संजाना॒ना उ॒पास॑ते
 स॒मा॒नो मन्त्र॒: समि॑तिः समा॒नी स॑मा॒नं मन॑: स॒ह चि॒त्तमे॑षाम् स॒मा॒नं मन्त्र॑म॒भि म॑न्त्रये वः समा॒नेन॑ वो ह॒विषा॑ जुहोमि स॒मा॒नी व॒ आकू॑तिः समा॒ना हृद॑यानि वः स॒मा॒नम॑स्तु वो॒ मनो॒ यथा॑ व॒: सुस॒हास॑ति

            २९. मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि गर्वो दुर्वचनं तथा।
            क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः॥
मूर्खों के पाँच लक्षण हैं - गर्व, अपशब्द, क्रोध, हठ और दूसरों की बातों का अनादर॥

सुजीर्णमन्नं सुविचक्षणः सुतःसुशासिता स्री नृपति: सुसेवितः।

३०.सुचिन्त्य चोक्तं सुविचार्य यत्कृतं,सुदीर्घकालेsपि न याति विक्रियाम्।।
अच्छी रीति से पका हुआ भोजन, विद्यावान पुत्र, सुशिक्षित अर्थात आज्ञाकारिणी स्री, अच्छे प्रकार से सेवा किया हुआ राजा, सोच कर कहा हुआ वचन, और विचार कर किया हुआ काम ये बहुत काल तक भी नहीं बिछड़ते हैं।


३१.सुभाषितेन गीतेन युवतीनां च लीलया । मनो न भिद्यते यस्य स वै योगीह्यथवा पशुः।।
शोकस्थानसहस्राणि भयस्थानशतानि च। दिवसे दिवसे मूढमाविशन्ति न पण्डितम।।
सहस्रों शोक की और सैकड़ों भय की बातें मूर्ख पुरुष को दिन पर दिन दुख देती है, और पण्डित को नहीं।
लोभात्क्रोधः प्रभवति लोभात्कामः प्रजायते। लोभान्मोहश्च नाशश्च लोभः पापस्य कारणम।
लोभ से क्रोध उत्पन्न होता है, लोभ से विषय भोग की इच्छा होती है और लोभ से मोह और नाश होता है, इसलिए लोभ ही पाप की जड़ है।


३२. विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमासदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः।
यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौप्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम।
आपदा में धीरज, बढ़ती में क्षमा, सभा में वाणी की चतुरता, युद्ध में पराक्रम, यश में रुचि और शास्र में अनुराग ये बातें महात्माओं में स्वाभाव से ही होती है।         


सुजीर्णमन्नं सुविचक्षणः सुतःसुशासिता स्री नृपति: सुसेवितः।
सुचिन्त्य चोक्तं सुविचार्य यत्कृतं,सुदीर्घकालेsपि न याति विक्रियाम्।।
अच्छी रीति से पका हुआ भोजन, विद्यावान पुत्र, सुशिक्षित अर्थात आज्ञाकारिणी स्री, अच्छे प्रकार से सेवा किया हुआ राजा, सोच कर कहा हुआ वचन, और विचार कर किया हुआ काम ये बहुत काल तक भी नहीं बिछड़ते हैं। 

दुर्जनम् प्रथमं वन्दे, सज्जनं तदनन्तरम्। 
मुख प्रक्षालनत् पूर्वे गुदा प्रक्षालनम् यथा ॥

First attend the people who are not so good, the the better ones. Like in the morning we wash our face after washing our rear ends :)

पहले कुटिल व्यक्तियों को प्रणाम करना चाहिये, सज्जनों को उसके बाद; जैसे मुँह धोने से पहले, गुदा धोयी जाती है ।

 अयं निजः परोवेति, गणना लघुचेतसाम । 
उदारचरितानामतु वसुधैवकुटुम्बकम् ॥

It's mine and that is other's, this is a thought of a narrow-hearted (selfish) person, For generous people this whole world is their family.

यह मेरा है, यह दूसरे का है, ऐसा छोटी बुद्धि वाले सोचते हैं; उदार चरित्र वालों के लिये तो धरती ही परिवार है ।

 विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्तिः परेशाम् परपीड़नाय । 
खलस्य साधोर्विपरीतमेतद ज्ञानाय, दानायचरक्षणाय॥

Knowledge for altercations, Wealth for arrogance, power to harass others. But in gentlemen these traits are opposite then the miscreants, It is for wisdom, charity and to protect respectively.

विद्या विवाद के लिये, धन मद के लिये, शक्ति दूसरों को सताने के लिये, ये चीजें सज्जन लोगों में दुष्टों से उल्टी होती हैं, क्रमशः ज्ञान, दान और रक्षा के लिये ।

न चौरहार्यम् न न राजहार्यम् न भ्रातृभाज्यम् न च भारकारि । 
व्यये कृते वर्धत एव नित्यम् विद्या धनं सर्व धनम् प्रधानम् ॥

Neither thieves can snatch it away nor the king, Neither brothers can divide it nor it is heavy. It keeps on increasing as you spend it (with others), So the wealth of knowledge is superior to all.

न चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है, न भाई बांट सकते हैं और न यह भारी है। खर्च करने पर रोज बढती है, विद्या धन सभी धनों में प्रधान है ।

 ताराणां भूषणम् चन्द्र, नारीणां भूषणम् पतिः । 
पृथिव्यां भूषणम् राज्ञः विद्या सर्वस्य भूषणम् ॥

Star's grace is the moon, Husband is the ornament for a woman. Land's grace is a king and knowledge is ornament for all (everyone).

चन्द्रमा तारों का आभूषण है, नारी का भूषण पति है । पृथ्वी का अभूषण राजा है और विद्या सभी का आभूषण है ।

 उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं क्रिया विधिज्ञं व्यसनेष्वसक्तम् । 
शूरं कृतज्ञं दृढ सौहृतम् च लक्ष्मीः स्वयं याति निवास हेतो ॥

Lakshmi (Goddess of Wealth) comes to live with him, who is full of excitement, active, posses skills and indulged in good work. Who is courageous, grateful, has solid friendship.

जो उत्साह से भरा है, आलसी नहीं है, क्रिया कुशल है और अच्छे कामों में रत है, वीर, कृतज्ञ और अच्छी मित्रता रखने वाला है, लक्ष्मी उस के साथ रहने अपने आप आती है ।

 आचारः परमो धर्म आचारः परमं तपः। 
आचारः परमं ज्ञानम् आचरात् किं न साध्यते॥


Good conduct is the highest dharma, it is the greatest penance. It is also the greatest knowledge. What can't be achieved through good conduct?


व्यवहार परम धर्म है, व्यवहार ही परम तप है, व्यवहार ही परम ज्ञान है, व्यवहार से क्या नहीं मिल सकता ।

 शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे। 
 साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने॥

Every stone is not a jewel, Every elephant doesn't has gem. Gentlemen are not available everywhere Sandal doesn't exist in every forest.

हर पत्थर मणि नहीं होता, हर हाथी पर मुक्ता नहीं होता । सज्जन सभी जगह नहीं होते और चंदन हर वन में नहीं होता ।

  पुस्तकस्था तु या विद्या परहस्तगतं धनम्। 
   कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद् धनम्॥
Knowledge which is in book and money which is given to another one, Then when required at that time neither that knowledge nor that money can be used.

किताब में रखा ज्ञान और दूसरे को दिया धन, काम पडने पर न वह विद्या काम आती है और न वह धन ।

       वरमेको गुणी पुत्रः न च मूर्खशतान्यपि। 
      एकश्चंद्रस्तमो हन्तिः न तारागणाऽपि च॥

(O God!) Give me a virtuous son, instead of hundreds of wicked. Only one moon can lighten in the dark but not all stars can do it.

मुझे एक गुणी पुत्र मिले न कि सौ मूर्ख पुत्र, एक ही चन्द्रमा अन्धेरे को खत्म करता है, सभी तारे मिल कर भी नहीं कर पाते ।



16 comments:

  1. मम् नाम् रामसिंह: अस्ति।
    मम ग्रामस्य नाम् कोचियार अस्ति।
    मम ग्राम: उत्तराखंड राज्यस्य पौडी जनपदे स्थित: अस्ति।

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  2. Thats incridible fantastic mindblowing i like it so much so knolegeble and useful thanks

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  3. बहुत सुन्दर जयश्रीराम ।आपको सादर प्रणाम। आपको बहुत शुभकामनायें एवं धन्यवाद। राजेश सिंह

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  4. Very nice and knowledgeable. Thank you .

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  5. अस्माकं संस्कृतिसंरक्षकस्य कृते कोटिशः प्रणाम 🙏
    शुद्धम् शोभनम् भवतां संकलनम् •••••

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  6. Nice collection. Can I add some if I find a new one?

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  7. Thank you so much for this great collection. Do you have more of these related to vidya/ Education?

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  8. सम्यक् अस्ति।

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  9. Excellent selection... However some of the shlokas have spelling errors in the sanskrit words.

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  10. very good quotations. pl post more for reading and to practice in life

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  11. It's a collection of knowledge treasure

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  12. This comment has been removed by the author.

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  13. ११. काकचेष्टा वकध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च |
    अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणः॥ or
    ११. काकचेष्टा वकध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च |
    अल्पाहारी ब्रह्मचर्यं विद्यार्थी पंचलक्षणः॥
    बकः ध्यानं -> बकध्यानं बकवद्ध्यानं->बकध्यानं and becomes two words and गृहत्यागी or ब्रह्मचर्यं since a student should not involve in sex like गृहस्थ because गृह also means wife and it should be Pupil with five characters. पञ्ञानि लक्षणानि यस्य सः (अत्र विद्यार्थी)=पञ्ञलक्षणः विद्यार्थी or in verse/prose order can be विद्यार्थी पञ्चलक्षणः to satisfy अनुष्टुप् छन्दः. Please correct it to विद्यार्थी पंचलक्षणः in the last line of 11th stanza

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  14. But अल्पाहारी गृहत्यागी preserves the rule of छन्दः. better to retain
    ११. काकचेष्टा वकध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च |
    अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणः॥

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