|| ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ||।
ॐ।।
विभक्ति या परसर्ग-
जिन प्रत्ययों से कारकों की स्थितियों का बोध होता है, उन्हें विभक्ति या परसर्ग कहते हैं। आठ कारकों के विभक्ति चिह्न या परसर्ग इस प्रकार होते हैं-
विभक्ति या परसर्ग-
जिन प्रत्ययों से कारकों की स्थितियों का बोध होता है, उन्हें विभक्ति या परसर्ग कहते हैं। आठ कारकों के विभक्ति चिह्न या परसर्ग इस प्रकार होते हैं-
कारक | चिह्न | अर्थ |
---|---|---|
कर्ता | ने | काम करने वाला |
कर्म | को | जिस पर काम का प्रभाव पड़े |
करण | से, द्वारा | जिसके द्वारा कर्ता काम करें |
सम्प्रदान | को,के लिए | जिसके लिए क्रिया की जाए |
अपादान | से (अलग होना) | जिससे अलगाव हो |
सम्बन्ध | का, की, के; ना, नी, ने; रा, री, रे | अन्य पदों से सम्बन्ध |
अधिकरण | में,पर | क्रिया का आधार |
संबोधन | हे! अरे! अजी! | किसी को पुकारना, बुलाना |
संस्कृत व्याकरण के अनुसार नाम या संज्ञाशब्दों के बाद लगनेवाले वे प्रत्यय 'विभक्ति' कहलाते हैं
इसी प्रकार हिन्दी में आठ कारक होते हैं- कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण और सम्बोधन।
हिन्दी में " कर्ता, कर्म आदि सम्बन्ध बताने के लिए" संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्द के आगे "ने, को, से" आदि जोड़ दिये जाते हैं, किन्तु संस्कृत में इस सम्बन्ध को बताने के लिए >>>
संज्ञा (राजीव, गोपाल, प्रयाग) सर्वनाम (तत्, इदम्, किम्) या विशेषण ( सुन्दर, एक, विशाल) शब्द का रूप बदल दिया जाता है, जैसे - राजीवः (राजीव ने)
प्रयागम् (प्रयाग को) आदि।
संस्कृत भाषा में जब किसी शब्द का कोई अर्थ निकालना हो तो उस शब्द में विभक्ति लगाते हैं।
सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि विभक्ति शब्द का ही रूपान्तरित अंग है जैसे - बाणेन, हिमालयात् इत्यादि।
शब्द के आगे लगा हुआ वह चिह्न ही विभक्ति है, जिससे हमें शब्द का क्रिया-पद से सम्बन्ध पता चलता है।
संस्कृत में सात विभक्तियाँ होती हैं --
विभक्ति अर्थ
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प्रथमा.............ने
द्वितीया..........को
तृतीया..........से, द्वारा
चतुर्थी...........के लिए
पञ्चमी.........से अलग होना
षष्ठी..............का,की,के
सप्तमी...........में, पर
सात विभक्तियों के उदाहरण--
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प्रथमा विभक्ति - राधिकाः जलम् इच्छति।
राधिका जल चाहती है।
द्वितीया विभक्ति- प्रयागं प्रति गच्छ।
प्रयाग जाओ।
तृतीया विभक्ति- बाणेन रावणः हतः।
बाण से रावण मरा।
चतुर्थी विभक्ति - राजीवाय जलम् आनय।
राजीव के लिए जल लाओ।
पंचमी विभक्ति - हिमालयात् गङ्गा प्रभवति।
हिमालय से गंगा निकलती है।
षष्ठी विभक्ति - गङ्गायाः जलं पवित्रं अस्ति।
गंगा का जल पवित्र है।
सप्तमी विभक्ति - तडागे कमलं अस्ति।
तालाब में कमल है।
रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे।
रामेण अभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः।
रामात् नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोस्म्यहम्।
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम ! मामुध्दर।।
Namonamah.
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